सुबह उठा
तो कुछ नहीं
दिखा
सिर्फ धुंध दिखी
तुम्हारी आँखें नहीं दिखीं
एक कहानी पढ़ी थी
मैंने
एक राक्षस की
वो अपने प्रेमी
को नहीं देख
पाता था
उसके चेहरे के आस
पास
बादल उड़ते रहते
वो पेड़ों के सर
सहलाता रहता
जैसे उसके प्रेमी
कि ज़ुल्फ़ें हों
मुझे भी तुम्हारी
परछाई का
इंतज़ार है आज
सुबह
कल रात ख्वाब
में
तुम ही थे
ना
जब अचानक पलटकर
मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा
था?
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